हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मरजा ए तकलीद आयतुल्लाहिल उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी ने आधुनिक तकनीक, मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से संबंधित कई शरई सवालों के जवाब प्रदान किए हैं। इन जवाबों में कॉपीराइट, शैक्षणिक ईमानदारी और व्यक्तियों की निजी गरिमा की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है।
प्राप्त रिपोर्ट्स के अनुसार, इस संदर्भ में किए गए महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब निम्नलिखित हैं:
1)अनुवादकों और लेखकों द्वारा किसी भी ऐसे वैज्ञानिक या साहित्यिक कार्य का अनुवाद या प्रकाशन, जिस पर कॉपीराइट मौजूद हो और प्रकाशक या लेखक की अनुमति न ली गई हो, शरई तौर पर जायज़ नहीं है, यहाँ तक कि उन देशों में भी जहाँ कॉपीराइट के कानून सख्ती से लागू नहीं हैं।
2) यदि कोई व्यक्ति किसी किताब या लेख का अनुवाद बिना अनुमति न लेकर करे तो यह कार्य भी नाजायज़ और अर्थिक हड़पने के दायरे में आता है।
3) सोशल मीडिया या वेबसाइट्स पर दूसरों के वीडियो, टेक्स्ट या चित्रों को बिना अनुमति के इस्तेमाल करना केवल तभी जायज़ है जब मालिक की सहमति निश्चित हो।
4) किसी व्यक्ति के चेहरे या आवाज़ को मज़ाक, व्यंग्य या विज्ञापन के तौर पर इस्तेमाल करते हुए उसकी तस्वीर या वीडियो बनाना, यदि उसकी अनुमति के बिना हो, तो यह कार्य भी शरई तौर पर जायज़ नहीं है।
5) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से लेख, किताब या शोध सामग्री तैयार करके उसे अपनी ओर से जारी करना, और AI की भूमिका का उल्लेख न करना, जायज़ नहीं है। हाँ, अगर स्पष्ट रूप से बता दिया जाए कि कार्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद शामिल है तो अनुमति है।
6) यदि शोध का बड़ा हिस्सा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए तैयार किया गया हो और व्यक्ति उसे अपनी ओर से जारी कर दे, तो यह कार्य धोखाधड़ी और बौद्धिक हड़पने (ग़ुस्ब-ए-इल्मी) के दायरे में आता है और शरई तौर पर समस्याजनक है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी के यह बयान इस बात की स्पष्ट मिसाल हैं कि आधुनिक तकनीक के दौर में भी शरीअत-ए-इस्लामी हर स्तर पर मानवाधिकार, नैतिक जिम्मेदारियों और शैक्षणिक ईमानदारी को मौलिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत करती है।
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